रविवार, 21 दिसंबर 2008

कान्हा

ओ रे कान्हा याद तेरी पल-पल तडपाए रे
मुझ बिरहन की हालत पे तोहे तरस ना आए रे
तेरी एक दरस की दीवानी हूं मैं तो
और तू ऐसौ छलिया है बालम नज़र ना आए रे
ओ रे कान्हा याद तेरी....
सांझ ढले मैं पानी भरने पनघट की राह चली हूं
भरी गगरिया सिर पे धर के अब सोचन में पडी हूं
कब तू पीछे से कंकरिया मारे, गगरी छलकाए रे
ओ रे कान्हा याद तेरी....
फागुन आयो बरसाने में उडौ है अबीर गुलाल
प्रेमरंग से रंग डारे तूने सब सखियन के गाल
इक मेरो संग छोड सब संग रास रचाए रे
ओ रे कान्हा याद तेरी ....
सावन में हरी कदम्ब पे झूला झूल पडे है
सब सखियां मिल झूलें प्रीतम भी पास खडे हैं
तू काहे मोहे प्रेम हिंडोला ना झुलवाए रे
ओ रे कान्हा याद तेरी....
तेरी बंसी की तान बिना तरसे मेरे प्रान
तुझ बिन बैरी सा लागे मोहे सकल जहान
बिन तेरे सुन साजन मेरे मोहे जग ना भाए रे
ओ रे कान्हा याद तेरी....


मंगलवार, 30 सितंबर 2008

उसका सामराज्य

नीर भी उसी का, छीर भी उसी का
धीर भी उसी का, वीर भी उसी का

भोग भी उसी का, योग भी उसी का
संयोग भी उसी का, वियोग भी उसी का


तन भी उसी का, मन भी उसी का
जन भी उसी का, धन भी उसी का


सुख भी उसी का, दु:ख भी उसी का
शुभ भी उसी का, अशुभ भी उसी का

भय भी उसी का, अभय भी उसी का
क्षय भी उसी का, अक्षय भी उसी का

परीत भी उसी की, मीत भी उसी का
गीत भी उसी का, संगीत भी उसी का

जनम भी उसी का, मरण भी उसी का
वरण भी उसी का, हरण भी उसी का

ग्यान भी उसी का, अग्यान भी उसी का
दान भी उसी का, वरदान भी उसी का

सार भी उसी का, असार भी उसी का
संसार भी उसी का, व्यापार भी उसी का

अंश भी उसी का, वंश भी उसी का
दंश भी उसी का, विध्वंस भी उसी का

आलाप भी उसी का, विलाप भी उसी का
संताप भी उसी का, मिलाप भी उसी का

काम भी उसी का, राम भी उसी का
संगराम भी उसी का, विराम भी उसी का

रूप भी उसी का, अरूप भी उसी का
सुंदर भी उसी का, कुरूप भी उसी का

शिषय भी उसी का, गुरू भी उसी का
मैं भी उसी का,तू भी उसी का

बुधवार, 24 सितंबर 2008

हेमंत रिछारिया सम्मानित


उल्लेखनीय साहितियक योगदान के लिये युवा कवि हेमंत रिछारिया को सम्मानित करते होशंगाबाद विधायक श्री मधुकर राव हरणे एवं मशहूर शायर श्री बशीर बद्र !

वो समझे मेरी शरारत है

कांटों में उलझा था दामन
वो समझे मेरी शरारत है

सबा ने छीनी थी चिलमन
वो समझे मेरी शरारत है

तसव्वुर ए शबे वस्ल में खुद बेचैन हो उठे वो
तेज़ हो गई जो धड़कन वो समझे मेरी शरारत है

इश्क कि बातों को अब कौन उन्हें समझाए
पेश आ रही गर उलझन वो समझे मेरी शरारत है

शनिवार, 13 सितंबर 2008

दूल्हा बिकता है

एक बार हमारे शहर मे "डिस्काऊंट-सेल" है आया
योग्य-वर बिकाऊ है ऐसा परचार करवाया
ये खबर सुनते ही,बेटियोंं के बापोंं की बांछे थी खिलीं
लग रहा था मानोंं अंधे को दो आंखें मिली!
मेरा भी दो बेटियों का छोटा सा परिवार था
सो मैं भी उस बाजार का एक बडा खरीददार था
मैने भी "सेल" में शाॅपिंग करने का मन बनाया
बैंक से कुछ 'कैश' और एक 'करेडिट-कारड' निकलाया!
जब ह्म पहुंचे बाज़ार वहां अच्छी खासी भीड थी
राशन की दुकान की जीती जागती तस्वीर थी
ंज्योंं ही हमने 'क्यू' तोडकर किया अंदर जाने का साहस
गेट पर खडा गोरखा चीखा "आपका इतना दु:साहस"
हाथोंं में बंदूक लिये वो हम पर चिल्लाया
'गेट-पास' के साथ हमने फिर सौ का नोट बढाया
देख कडक हरियाली उसने झट सलाम बजाया
बडे अदब के साथ पीछे से अंदर पहुँचाया
आंखे थीं चकराई हमारी देख अंदर का नज़ारा
विकरेताओं ने अपने 'माल' को था खूबसूरती से सँवारा
काँच के शोकेस में 'शो-पीस' से खडे थे लडके
हाथोंं में 'क्वालिटी-सिलिप' और गले में रेट थे लटके
डाॅक्टर/इंजीनीयर-पचास लाख,गवरमेंट सरवेंट-तीस लाख,वकील-बीस लाख
और कवि 'एक्सचेंज आॅफर' के तहत आसान किस्तोंं में!
इतने में विकरेता चित-परिचित शैली में बोला
"बोलिए साहब; कौन सा दे दूं-डाॅक्टर,वकील,या गवरमेंट सरवेंट"
मैंने कहा-"नो कमेंट"!
उसने फिर डाॅक्टर वर दिखाते हुए कहा-जनाब ये माल बहुत उम्दा है
आजकल ज़ोरोंं पर चल रहा इसका धंधा है
कीमत है सिरफ पचास लाख!
मैने कहा-" ये तो बहुत मँहगा पडेगा"
विकरेता बोला- तो क्या हुआ बढिया सरविस के साथ
अच्छी 'री-सेल वैल्यू' भी तो देगा
मेरी मनोवरती भांप विकरेता ने थोडा और आगे मुझे सरकाया
बडी तारीफोंं के बाद उसने अपना अगला माल दिखाया
बोला-ये वकील है, अंदर-बाहर का इसका काम है
जुरम की दुनिया में चलता इसका नाम है
कीमत है सिरफ- बीस लाख!
मैंने कहा- मैं इतने नहीं दे पाऊंगा
उसने कहा-अठारह में सौदा पटाऊंगा
पर मैं रहा दस पर ही अडा
वो बोला-इतने में तो ये हमको नहीं पडा
अंत में उसने हमें'कवि' से मिलवाया
और उसकी शान में कुछ ऐसा फरमाया
देखिए साहब- ये माल है सस्ता,सुंदर,टिकाऊ
स्पेशल आफर के तहत आसान किस्तोंं में बिकाऊ
कीमत सिरफ-पचास हज़ार!
दिल ने कहा मुरादें पूरी होंगी अबकी बार
मैने पूछा-गारंटी कितने साल की
वो बोला-बात करते हो कमाल की
भला 'दिल्ली मेड' माल की भी कोई गारंटी होती है
चल गया जब तक चल गया
इतना सुनते ही हमारे सपनोंं का महल बिखर गया
सौदा पटता ना देख हम करोधित हो चिल्लाए
करेता-विकरेता थे सब आपस में घबराए
हुम चीखे-"अपने पैरोंं पर खडे होकर मांगा करते हो भीख
शादी-ब्याह के संबंधोंं में सौदेबाजी करना क्या ठीक
धन कमाने का लडकोंं को हथियार बना रखा है
अंधेर ज़माना आया दूल्होंं का बाज़ार लगा रखा है
इतने में विकरेता ने चुटकी ली-
"शुकर करें जनाब ये सिरफ दूल्होंं का बाज़ार है,
वरना इस युग में तो हर कोई बिकने को तैयार है"!

शुक्रवार, 16 मई 2008

तुझे कैसे मै सजांऊ

तेरे माथे पे जो चमक सके
वो बिंदिया कहां से लाऊं
तेरे नयनों में जो दमक सके
वो कजरा कहां से लाऊं
तेरी ज़ुलफ़ों को जो बांध सके
वो गजरा कहां से लाऊं
ए मेरे मनमीत तुझे कैसे मै सजाऊं

तेरे होंठों पे जो निखर सके
वो लाली कहां से लाऊं
तेरे गालों पे जो बिखर सके
वो सुरखी कहां से लाऊं

तेरे हाथों में जो खनक सके
वो कंगन कहां से लाऊं
तेरे पैरों में झनक सके
वो पायल कहां से लाऊं
ए मेरे मनमीत तुझे कैसे मै सजाऊं

तेरे तन पे जो महक सके
वो चंदन कहां से लाऊं
तेरे खुशबू जिसमे समा सके
वो मधुबन कहां से लाऊं
तेरा रूप जिनम समा सके
वो अखियां कहां से लाऊं
ए मेरे मनमीत तुझे कैसे मै सजाऊं

मंगलवार, 13 मई 2008

मेरा अकेलापन

इंसानों की भीड़ में ना जाने
कहां खो गया मेरा बचपन
रह गया मैं और मेरा अकेलापन

ना ही जी पाया मै अपनी तरूणाई
ना ही जीत सका किसी का मन
बिन तस्वीर रह गया मेरे मन का दरपण
अपने ही विचारो में उलझता;सुलझता
करता अपने आप से ही अनबन
रह गया मै और मेरा अकेलापन

मह्त्वाकांछाओं के इस दौर में
बनाता अपनी पहचान
खोजता;तलाशता अपनी मंज़िल
मेरा व्यथित मन
उम्मीद है होगा एक दिन मिलन
कल जहां था आज भी वहीं है
मै और मेरा अकेलापन

सोमवार, 12 मई 2008

हाईकु

पीर दिल की
कहने बह चले
नि:शब्द आंसू

एक इशारा
जिसपे दिल हारा
तुम्हारा ही था

हो गई विदा
जग से; पर हुआ
महामिलन

कैसा विरोध
राम रहीम कौन
ज़रा सा बोध

सरिता मांगे
अपना हिस्सा आज
खामोश व्योम

कैसा लगता
सपनों के शहर
आकर तुम्हे