शुक्रवार, 16 मई 2008

तुझे कैसे मै सजांऊ

तेरे माथे पे जो चमक सके
वो बिंदिया कहां से लाऊं
तेरे नयनों में जो दमक सके
वो कजरा कहां से लाऊं
तेरी ज़ुलफ़ों को जो बांध सके
वो गजरा कहां से लाऊं
ए मेरे मनमीत तुझे कैसे मै सजाऊं

तेरे होंठों पे जो निखर सके
वो लाली कहां से लाऊं
तेरे गालों पे जो बिखर सके
वो सुरखी कहां से लाऊं

तेरे हाथों में जो खनक सके
वो कंगन कहां से लाऊं
तेरे पैरों में झनक सके
वो पायल कहां से लाऊं
ए मेरे मनमीत तुझे कैसे मै सजाऊं

तेरे तन पे जो महक सके
वो चंदन कहां से लाऊं
तेरे खुशबू जिसमे समा सके
वो मधुबन कहां से लाऊं
तेरा रूप जिनम समा सके
वो अखियां कहां से लाऊं
ए मेरे मनमीत तुझे कैसे मै सजाऊं