मंगलवार, 13 मई 2008

मेरा अकेलापन

इंसानों की भीड़ में ना जाने
कहां खो गया मेरा बचपन
रह गया मैं और मेरा अकेलापन

ना ही जी पाया मै अपनी तरूणाई
ना ही जीत सका किसी का मन
बिन तस्वीर रह गया मेरे मन का दरपण
अपने ही विचारो में उलझता;सुलझता
करता अपने आप से ही अनबन
रह गया मै और मेरा अकेलापन

मह्त्वाकांछाओं के इस दौर में
बनाता अपनी पहचान
खोजता;तलाशता अपनी मंज़िल
मेरा व्यथित मन
उम्मीद है होगा एक दिन मिलन
कल जहां था आज भी वहीं है
मै और मेरा अकेलापन

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