सोमवार, 12 मई 2008

हाईकु

पीर दिल की
कहने बह चले
नि:शब्द आंसू

एक इशारा
जिसपे दिल हारा
तुम्हारा ही था

हो गई विदा
जग से; पर हुआ
महामिलन

कैसा विरोध
राम रहीम कौन
ज़रा सा बोध

सरिता मांगे
अपना हिस्सा आज
खामोश व्योम

कैसा लगता
सपनों के शहर
आकर तुम्हे

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