मंगलवार, 30 सितंबर 2008

उसका सामराज्य

नीर भी उसी का, छीर भी उसी का
धीर भी उसी का, वीर भी उसी का

भोग भी उसी का, योग भी उसी का
संयोग भी उसी का, वियोग भी उसी का


तन भी उसी का, मन भी उसी का
जन भी उसी का, धन भी उसी का


सुख भी उसी का, दु:ख भी उसी का
शुभ भी उसी का, अशुभ भी उसी का

भय भी उसी का, अभय भी उसी का
क्षय भी उसी का, अक्षय भी उसी का

परीत भी उसी की, मीत भी उसी का
गीत भी उसी का, संगीत भी उसी का

जनम भी उसी का, मरण भी उसी का
वरण भी उसी का, हरण भी उसी का

ग्यान भी उसी का, अग्यान भी उसी का
दान भी उसी का, वरदान भी उसी का

सार भी उसी का, असार भी उसी का
संसार भी उसी का, व्यापार भी उसी का

अंश भी उसी का, वंश भी उसी का
दंश भी उसी का, विध्वंस भी उसी का

आलाप भी उसी का, विलाप भी उसी का
संताप भी उसी का, मिलाप भी उसी का

काम भी उसी का, राम भी उसी का
संगराम भी उसी का, विराम भी उसी का

रूप भी उसी का, अरूप भी उसी का
सुंदर भी उसी का, कुरूप भी उसी का

शिषय भी उसी का, गुरू भी उसी का
मैं भी उसी का,तू भी उसी का

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