गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

जन्म-दिवस

देखो ये कौन अपना 'जन्म-दिवस' मना रहा है
जीवन से म्रत्यु की ओर सहज बढा जा रहा है!

जन्मदिन आया हर्षित मन है,बनने लगे पकवान
दावत खाने आए हैं घर में कई मेहमान
जो घडियाँ हैं चिंतन की उन्हें यूं ही लुटा रहा है!
देखो ये कौन अपना......
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ना देवालय में भेंट चढाई; ना माथा दिया टेक
मगर शाम की महफिल में कटने आया है केक
फूंक मारकर अपने मुख से जीवन-दीप बुझा रह है!
देखो ये कौन अपना......
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है यही दिन जब हम दुनिया में आके खोए
हमें देखकर जग हँसा था हम आते ही रोए
वो रोना भूल कर अब व्यर्थ हँसा जा रहा है!
देखो ये कौन अपना......
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मानव तन जो पाया है करो इसका सदुपयोग
ग्यान; ध्यान; प्रेम से बढकर भी है भक्ति योग
कर आराधन ईश्वर का तेरा प्रतिपल घटा जा रहा है!
देखो ये कौन अपना......

1 टिप्पणी:

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

जन्‍मदिन पर श्रेष्‍ठ कविता की प्रस्‍तुति