सोमवार, 16 फ़रवरी 2009

दिल की कहानी

ना महकी फिज़ा; ना खुशरंग घटा
ना शाम सुहानी लिखता हूं
मैं तो यारों बस अपने
दिल की कहानी लिखता हूं

औरों की बात नहीं अपने जीवन का किस्सा है
दर्दे-गुल खिले हैं जिसमें वो बेरंग गुलिस्ता है
जो अब तक दिल पे गुज़री है वो ज़ुबानी लिखता हूं

ना पवन कोई ज़िक्र करूं ना बात करूं बरसातों की
ना मेघों का शोर सुनूं ना कसक ठंडी रातों की
मैं तो बस अपनी आँखों का झरता पानी लिखता हूं

औरों से क्या लेना-देना जब अपनों से मेरा नाता है
ये भी सच है दुनिया में 'अपना' ही दिल दुखाता है
गैरों की बात नहीं मैं अपनों की कहानी लिखता हूं

2 टिप्‍पणियां:

Mishra Pankaj ने कहा…

nice poem!!!!!!!!1

hem pandey ने कहा…

ना मेघों का शोर सुनूं ना कसक ठंडी रातों की
मैं तो बस अपनी आँखों का झरता पानी लिखता हूं

-सुंदर पंक्तियाँ.