ए खुदा! तेरा ईजादे-करिश्मा तेरी पहचान ना बन सका
ये हाड मांस का पुतला कभी इंसान ना बन सका
घर की लाज ना बच पाएगी देहरी पे लटके पर्दों से
टुकडा भर कफन कभी गरीबों की आन ना बन सका
यूं कितने देते हैं जां इन आम कत्लोगारद में
मगर हर मरहूम वतन की शान ना बन सका
मातम में गाए जाएं ऐसे मरसिये सुने बहुत
दैरो-हरम में जो गूँजे वो अजान ना बन सका
पैगाम दिए हैं जाने कितने इन सामंती दरबारों ने
अमन-मोहब्बत फैलाए वो फरमान ना बन सका
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