शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

खुशी

ए! खुशी कभी हमारा दरवाज़ा भी खटखटा
यूं गैरों की तरह नज़रें चुराकर तो न जा

तन्हा-तन्हा दिन कटता,रातें कटी बेज़ार,
थक गए करते-करते अब तेरा इंतजार
कभी अपने आगोश में लेकर,मीठी नींद सुला
ए! खुशी अब आ भी जा.....

अपने लिए सब एक से हैं,क्या होली-दीवाली,
जेबों की तरह है अपनी किस्मत खाली-खाली
कच्चे घर की चौखट पे भी अरमानो के दीप जला
ए! खुशी अब आ भी जा.....

तोरण द्वार सजे;महके घर का अँगना,
बेटी डोली में बैठे पूरा हो यह सपना
हमारी गली में भी बारात की शहनाई बजा
ए! खुशी अब आ भी जा.....

सोमवार, 16 फ़रवरी 2009

दिल की कहानी

ना महकी फिज़ा; ना खुशरंग घटा
ना शाम सुहानी लिखता हूं
मैं तो यारों बस अपने
दिल की कहानी लिखता हूं

औरों की बात नहीं अपने जीवन का किस्सा है
दर्दे-गुल खिले हैं जिसमें वो बेरंग गुलिस्ता है
जो अब तक दिल पे गुज़री है वो ज़ुबानी लिखता हूं

ना पवन कोई ज़िक्र करूं ना बात करूं बरसातों की
ना मेघों का शोर सुनूं ना कसक ठंडी रातों की
मैं तो बस अपनी आँखों का झरता पानी लिखता हूं

औरों से क्या लेना-देना जब अपनों से मेरा नाता है
ये भी सच है दुनिया में 'अपना' ही दिल दुखाता है
गैरों की बात नहीं मैं अपनों की कहानी लिखता हूं

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

अफसोस

ए खुदा! तेरा ईजादे-करिश्मा तेरी पहचान ना बन सका
ये हाड मांस का पुतला कभी इंसान ना बन सका

घर की लाज ना बच पाएगी देहरी पे लटके पर्दों से
टुकडा भर कफन कभी गरीबों की आन ना बन सका

यूं कितने देते हैं जां इन आम कत्लोगारद में
मगर हर मरहूम वतन की शान ना बन सका

मातम में गाए जाएं ऐसे मरसिये सुने बहुत
दैरो-हरम में जो गूँजे वो अजान ना बन सका

पैगाम दिए हैं जाने कितने इन सामंती दरबारों ने
अमन-मोहब्बत फैलाए वो फरमान ना बन सका

अभिलाषा

मेरे एक मित्र ने जो युवा अभी हुआ ही था
मुझसे बोला अब मेरी शादी होना चाहिए
मैंने कहा यार मेरे तुझे जो पसंद आए
जरा हमें बतला दे वो कैसी होना चाहिए
लाल गाल कर शर्माते हुए वह बोला
चेहरे पे परियों सा नूर होना चाहिए
मीठे-मीठे बोल बोले हर पल मेरे संग
कंठ में कोयल सा स्वर होना चाहिए
और एक बात 'कवि' होगी जो बडी अहम
पतिव्रत में 'सीता' सम होना चाहिए
मैंने कहा सुन प्यारे जितना हो दामन अपना
उतनी ही सौगात की उम्मीद होना चाहिए
दूसरों का आंकलन करने से पहले सुनो
अपनी नजर में परख होना चाहिए
'सीता' जैसी अर्धांगिनी चाहते हो भाई मेरे
तो पहले आप खुद 'श्रीराम' बन जाइए!

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

जन्म-दिवस

देखो ये कौन अपना 'जन्म-दिवस' मना रहा है
जीवन से म्रत्यु की ओर सहज बढा जा रहा है!

जन्मदिन आया हर्षित मन है,बनने लगे पकवान
दावत खाने आए हैं घर में कई मेहमान
जो घडियाँ हैं चिंतन की उन्हें यूं ही लुटा रहा है!
देखो ये कौन अपना......
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ना देवालय में भेंट चढाई; ना माथा दिया टेक
मगर शाम की महफिल में कटने आया है केक
फूंक मारकर अपने मुख से जीवन-दीप बुझा रह है!
देखो ये कौन अपना......
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है यही दिन जब हम दुनिया में आके खोए
हमें देखकर जग हँसा था हम आते ही रोए
वो रोना भूल कर अब व्यर्थ हँसा जा रहा है!
देखो ये कौन अपना......
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मानव तन जो पाया है करो इसका सदुपयोग
ग्यान; ध्यान; प्रेम से बढकर भी है भक्ति योग
कर आराधन ईश्वर का तेरा प्रतिपल घटा जा रहा है!
देखो ये कौन अपना......