शान्त अहिंसक भाव हमारा, संहार पर मजबूरी है।
रगों में शोणित उबला, रिपुओं का मस्तक लाने को,
देखें चंगुल से ग्रीवा की, अब कितनी दूरी है।
क्षमाशील होने को कायरता क्यों समझ लिया,
आमन्त्रण है रणांगण में तैयारी अबकी पूरी है।
कट-कट कर यों अरि गिरें ज्यों पतझर पात पके झरें
बीत चली ये तिमिर निशा प्राची देखो सिन्दूरी है।
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