रविवार, 14 अप्रैल 2013

मंच-फिक्सिंग

एक बार किया गया नगर में कवि-सम्मेलन का आयोजन
उच्च कोटि की कविताएं सुनने का था प्रायोजन।
आमंत्रित कविगण की सूची सबसे ऊपर हमारा नाम था,
हो भी क्यों ना;आजकल कविता लिखना ही हमारा काम था।
जैसे ही आयोजक ने सम्मेलन में पधारने की बात की,
वैसे ही हमने उनपर बिन बादल बरसात की।
कहा नहीं लेते हैं हम कोई भी "रिस्क",
इसलिए कर लेते हैं पहले पारिश्रमिक "फिक्स"।
मेरी कविताओं में हैं बड़ी रानाईयां,
सो दामों में भी होगीं थोड़ी सी ऊंचाईयां।
"हास्य",व्यंग्य,श्रंगार के कुल लूंगा दस हज़ार,
क्योंकि ये रचनाएं मैं पढ़ूंगा पहली बार।
अभी कुछ दिनों पहले कवि-सम्मेलन में होकर आया हूं,
ये ताज़ा रचनाएं मैं वहीं से सारी लाया हूं।
मेरी बातें सुनकर आयोजक का सिर चकराया,
गुस्से में आंखें लाल कर वो मुझपर गुर्राया।
बोला-बड़े छुपे रूस्तम हैं आप;जो निकले भ्रष्टाचारी,
साहित्यकार था जाना मैंने;आप तो हैं व्यापारी।
अरे! कलम बेचने से पहले खुद मर जाना चाहिए,
आप जैसे साहित्यकारों को ज़िंदा जलाना चाहिए।

-हेमन्त रिछारिया

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