मेरी कविता
Poyems by Hemant Richhariya
बुधवार, 18 मार्च 2015
बुद्धत्व
जीवन की आपाधापी में,
अक्सर जब मन घबराता है।
उस पार से कोई बुलाता है,
तन चलने को अकुलाता है।
मगर “यशोधरा” का पल्लू ,
पैरों से लिपट जाता है।
“सिद्धार्थ” रूपी ये मन मेरा,
“बुद्ध” होते-होते रह जाता है॥
-हेमन्त रिछारिया
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