मैं नहीं लग सकता राशन की कतारों में,
ना ही पाओगे मुझे तुम टिकिट-खिड़की के आगे;
रेल्वे-स्टेशनों या थिएटरों में,
मिलूंगा नहीं मैं तुम्हें किसी बाज़ार में,
क्योंकि मैं विशिष्ट हूं।
मैं सफ़र नहीं करता बसों में;जनरल बोगियों में,
घूमता नहीं पैदल बेफ़िक्र किसी नदी के किनारे,
ठठ्ठा मारकर हंसना नहीं तहज़ीब मेरी,
बुक्का फाड़कर रोते देखा है मुझे कभी?
अकेला तुम मुझे कभी ना पाओगे,
घिरा रहता हूं हमेशा मैं भीड़ से,
क्योंकि मैं विशिष्ट हूं।
काश..! मैं भी अपने बच्चों को दुपहिया पर घुमा पाता,
कांधों पे बिठा अपने तितलियों की तरफ़ दौड़ पाता,
चौपाटी के वो गोल-गप्पे मेरा भी मन ललचाते हैं,
बारिश के सुहाने मौसम मुझे भी गुदगुदाते हैं,
लेकिन कुचलकर मैं अपने सारे अरमानों को,
घुटता रहता हूं अपनी विशिष्टता की कैद में।
हे विधाता! तू मुझे अगला जन्म मत देना,
और यदि दे तो यह विशिष्टता मत देना।
क्योंकि मैं भी जीना चाहता हूं अपनी ज़िंदगी,
एक आम आदमी की तरह...।
-हेमन्त रिछारिया
ना ही पाओगे मुझे तुम टिकिट-खिड़की के आगे;
रेल्वे-स्टेशनों या थिएटरों में,
मिलूंगा नहीं मैं तुम्हें किसी बाज़ार में,
क्योंकि मैं विशिष्ट हूं।
मैं सफ़र नहीं करता बसों में;जनरल बोगियों में,
घूमता नहीं पैदल बेफ़िक्र किसी नदी के किनारे,
ठठ्ठा मारकर हंसना नहीं तहज़ीब मेरी,
बुक्का फाड़कर रोते देखा है मुझे कभी?
अकेला तुम मुझे कभी ना पाओगे,
घिरा रहता हूं हमेशा मैं भीड़ से,
क्योंकि मैं विशिष्ट हूं।
काश..! मैं भी अपने बच्चों को दुपहिया पर घुमा पाता,
कांधों पे बिठा अपने तितलियों की तरफ़ दौड़ पाता,
चौपाटी के वो गोल-गप्पे मेरा भी मन ललचाते हैं,
बारिश के सुहाने मौसम मुझे भी गुदगुदाते हैं,
लेकिन कुचलकर मैं अपने सारे अरमानों को,
घुटता रहता हूं अपनी विशिष्टता की कैद में।
हे विधाता! तू मुझे अगला जन्म मत देना,
और यदि दे तो यह विशिष्टता मत देना।
क्योंकि मैं भी जीना चाहता हूं अपनी ज़िंदगी,
एक आम आदमी की तरह...।
-हेमन्त रिछारिया